मेरे आगे वो मंज़र आ रहे हैं।

वो ख़ुद चलकर मेरे घर आ रहे हैं।।


मैं सहराओं के जंगल मे खड़ा हूँ

सफीने पर बवण्डर आ रहे हैं।।


मेरा अगियार अपने  साथ लेकर

मुहब्बत के कलंदर आ रहे हैं।।


ख़ुदारा तिश्नगी की ताब रखना

बुझाने खुद समन्दर आ रहे हैं।।


कहाँ तक आईना बनकर रहूँ मैं

मेरी ही ओर पत्थर आ रहे हैं।।


अगर चारो तरफ हैं दोस्त अपने

कहाँ से इतने खंज़र आ रहे हैं।।


अँधेरों तुमको जाना ही पड़ेगा

अभी सूरज उगा कर आ रहे हैं।।


सुरेश साहनी,कानपुर

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