ये एकतरफा मुहब्बत मैं कर नहीं सकता।

मेरे ही दिल की मजम्मत मैं कर नहीं सकता।।

तुम्हारे ग़म भी सहे और मुस्कुराए भी

ये काम मैं किसी सूरत भी कर नहीं सकता।।

कि ऐतबार की हद से गुज़र गया सब कुछ

अब इससे ज़्यादा मुरौवत मैं कर नहीं सकता।।

ये क्या कि आप सितम पर सितम किये जायें

लिहाज़ में मैं शिकायत भी कर नहीं सकता।।

कि आप रोज बदलते रहेंगे दिल लेकिन

मैं अपने आप से हिज़रत भी कर नहीं सकता।।

तुम्हारी खाक़ हिफाज़त करेगा सोच ज़रा

अगर वो अपनी हिफाज़त भी कर नहीं सकता।।

सुरेश साहनी, कानपुर

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