अब ग़ज़ल कब तक रहेगी उनके पेंचोखम तलक।

एक दिन आना ही होगा आशिके बरहम तलक।।


सब्र की भी इंतेहा है इश्क़ की भी एक हद

ज़िन्दगी की हद नहीं है  सिर्फ़ उन के ग़म तलक।।


यमुना गंगा दोनों मिल कर दूर सागर तक गये

आप समझे इस नदी का था सफर  संगम तलक।।


चाँद की आवारगी की बात यूँ फैली कि फिर

रात रोई तारिकाएं रो पड़ी शबनम तलक।।


एक नादानी से दुनिया भर में रुसवा हो गए

तुम को थी कोई शिकायत बात रखते हम तलक।।

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