गोद अँधेरों की पलकर आ रही है रोशनी।
भ्रम है तारों से निकल कर आ रही है रोशनी।।
कितने परवाने मचलकर जलगये खाक़ हो गए
सब ने देखा शम्अ जलकर आ रही है रोशनी।।
क्यों ये कहते हो कि ये तारीकियां दीवार हैं
आपका मतलब उछलकर आ रही है रोशनी।।
आदमी की हसरतों ने जन्म सूरज को दिया
ख़्वाब के कपड़े बदलकर आ रही है रोशनी।।
आदमी को क्या पता है इस तरह नूरे-खुदा
चाँद और तारों में ढल कर आ रही है रोशनी।।
सुरेश साहनी अदीब
कानपुर
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