नाहक़ ख़्वाब बड़े देखे थे

आज टूटना अखर रहा है।

एक घरौंदा सच के हाथों

तिनका तिनका बिखर रहा है।।


उम्मीदों ने पाला पोसा

आशाओं ने मन बहलाया

विश्वासों ने जब जब लूटा

ख्वाबों ने तब हाथ बढ़ाया


अब वे भी मुंह मोड़ रहे हैं

दर्द  पुराना उभर रहा है ।। नाहक़ ख़्वाब


मत पूछो कितना खलता है

अपनों का बेगाना होना

जानी पहचानी महफ़िल में

अब्दुल्ला दीवाना होना


भीड़ भरी राहों में जीवन

तन्हा तन्हा गुज़र रहा है।।


कंकड़ पत्थर गोली कंचा

सीपी घोंघा गिल्ली डंडा

टूटे शीशे फूटी कौड़ी

खेल खजाना झोली झंडा


झाड़ी झुरमुट ही घर थे तब

साक्षी बूढा शज़र रहा है।।

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