आज तेवर में ग़ज़ल आयी है।

इस तरह पहले पहल आयी है।।

कल फ़क़त हुस्न पर इतराती थी

आज पत्थर में बदल आयी है।।

प्यार से बेतरह नफ़रत थी जिसे

आज वो ताजमहल आयी है।।

ग़ैरमुमकिन है गए दिन लौटें

ज़िन्दगी दूर निकल आयी है।।

मौत से मुझको डराता है क्या 

ज़ीस्त उस सू भी टहल आयी है।।

सुरेशसाहनी, कानपुर

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है