ठिकाना इक नया चलकर तलाशें।
नई धरती नया अम्बर तलाशें।।
मेरे सिजदे की हाजत है तो जाकर
कहीं मक़तल में मेरा सर तलाशें।।
मेरा दिल मोम होना चाहता है
कहो आहों से मेरा घर तलाशें।।
वही दुनिया वही महफ़िल वही दर
कहाँ जाकर नए मंज़र तलाशें।।
मेरा मिट्टी का पैकर ढल रहा है
चलो अल-ग़ैब कुज़ागर तलाशें।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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