माना एक दिवस जाना है
शेष दिवस तो खुल कर जी लें।
सभी बहाने हैं मरने के
चलों इन्हीं में खा लें पी लें।।
सुबह शाम की मारा मारी
इनसे यारी उनसे रारी
जैसे तैसे रात गुज़ारी
फिर अगले दिन की तैयारी
चादर गलनी ही गलनी है
जितना धो लें जितना सीलें।।
दिन आएंगे जायेंगे ही
हम उनको अपनाएंगे ही
सोते जगते रोते हँसते
जैसे हो कट जायेंगे ही
जितनी अपनी क्षमताएं हैं
बेहतर है हम उतना ही लें।।
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