उस हुस्ने-लाजवाब से रिश्ता नहीं रहा।

मेरा कभी गुलाब से रिश्ता नहीं रहा।।


वैसे तो मैं मिज़ाज़तन बेख़ुद रहा मगर

साक़ी से या शराब से रिश्ता नहीं रहा।।


उसने मुझे खयाल में रक्खा नहीं अगर

मेरा भी उसके ख़्वाब से रिश्ता नहीं रहा।।


आमद ख़ुदा की भी मेरे घर पर नहीं हुई

मेरा भी उन ज़नाब से रिश्ता नहीं रहा।।


जिस तरह आफ़ताब से दूरी बनी रही 

वैसे ही माहताब से रिश्ता नहीं रहा।।


वो चाहता है उसको खिताबे-गुहर मिले

जिसका कि इंकलाब से रिश्ता नहीं रहा।।


सुरेश साहनी, कानपुर

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