रिश्तों में दूरी होती है

मुझसे निस्पृह होकर मिलना।

क्या रिश्तों का बोझ लादकर

दिल से दिल तक मीलों चलना।।


रिश्तों से तो भले अजनबी

कुछ कहते कुछ सुन लेते हैं

बातों बातों में सनेह के

ताने बाने बुन लेते हैं


तुम भी कभी अजनबी बनकर

साथ मेरे दो डग ही चलना।।....


नर नारी के आकर्षण या अंतर को पीछे रख आना

सपनों को तह कर रख देना

आशाएं धूमिल कर आना


दुख देता है स्वप्न टूटना झूठी आशाओं का पलना।।


मेरे बहुत भले होने की कोई छवि मन मे मत गढ़ना

मेरी रचनाओं में साथी

मुझे जोड़कर कभी न पढ़ना ।।


सुरेश साहनी ,कानपुर

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है