बे वतन होना बुरा एहसास है।
दिल मगर मेरा वतन के पास है।।
बाल बच्चे छोड़कर आएं है हम
ये भी तो इक किस्म का बनवास है।।
लोग मेरे मानपूर्वक जी सके
इसलिए हमने सहे हर त्रास हैं।।
स्वप्न सब साकार होंगे एक दिन
इस बात का पूरा मुझे विश्वास है।।
इससे बेहतर कोई भी खुशबू नहीं
मेरी मिटटी की महक कुछ खास है।।
सुरेश साहनी
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