हमारी और उसकी एक भी आदत नहीं मिलती।
जो उसके शौक़ हैं उनसे मेरी फ़ितरत नहीं मिलती।।
हमारे दिल के दरवाजे से मिसरे लौट जाते हैं
कभी हम खुद नहीं मिलते,कभी फुर्सत नहीं मिलती।।
जिसे भी अज़मतें दी आपने दरवेश कर डाला
जहाँ पर ताज बख्शे हैं वहां अज़मत नहीं मिलती।।
कभी महबूब से मिलना न हो पाया न जाने क्यों
उसे खलवत नहीं मिलती हमें क़ुर्बत नहीं मिलती।।
पता चलते ही ये सच शेख मैखाने चले आये
कभी दैरोहरम के रास्ते ज़न्नत नहीं मिलती।।
फरिश्ते का कभी इबलीस होना ग़ैर मुमकिन था
अगर उसको ख़ुदा का क़ुर्ब या सोहबत नहीं मिलती।।
अगर गज़लें कबाड़ी ले गए समझो गनीमत है
बड़े बाजार में इससे भली कीमत नहीं मिलती।।
सुरेशसाहनी
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