अब दुआ दे या बददुआ दे मुझे।

इश्क़ है या नहीं बता दे मुझे।।


अपनी ज़ुल्फ़ों में क़ैद कर इकदिन

उम्र भर के लिए सज़ा दे मुझे।।


तन्हा कोई सफर नहीं कटता

अपनी यादों का काफिला दे मुझे।।


मिसरा-ए-ज़िन्दगी अधूरी है

हो मुक़म्मल वो काफिया दे मुझे।।


ज़ाम दे या कोई ज़हर दे दे

किसने बोला कि तू दवा दे मुझे।।


ऐसी भटकन से लाख बेहतर है

ज़िन्दगी मौत का पता दे मुझे।।


सुरेश साहनी,कानपुर  

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