हमें तो जितनी दफा मिले है।
वो खाये कसमे-वफ़ा मिले है।।
नए ज़माने का तौर हैं ये
सगा है जिससे नफा मिले है।।
गले न लगना न दिल से मिलना
कि दोस्त अक्सर खफ़ा मिले हैं।।
दवा से कितने सही हुए हैं
ज़हर से फिर भी शिफ़ा मिले है।।
किसी ने खायी कसम हमारी
न जाने वो क्यों ख़फ़ा मिले है।।
कैसे कह दें है स्याहदामन
लिबास उसका सफा मिले है।।
ये कैसे कह दें सभी गलत हैं
कोई अगर बेवफा मिले है।।
सुरेश आर सी साहनी
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