कुछ मूल्य घटे कुछ दाम बढे।
छोटे मोटे सब काम बढ़े ।।
दादा दादी नाना नानी
बूआ फूफा चाचा चाची
मौसी मौसा नाना नानी
ताऊ ताई भैया बहिनी
जैसे रिश्ते थे दर्जन भर
सारे लोगों में अपनापन
थे सब के सब केअरटेकर
वो फुलवारी वो बंसवारी
वो अमवारी वो महुवारी
वो दूर पोखरे तक जाती
थी मेड़ मेड़ वो पगडंडी
वो पीर चौक वो बरम डीह
उ काली माई से सनेह
छोटकन के घूमल घाट घाट
बाबा काका की मधुर डाँट
या उनका चपत लगा देना
फिर हौले से फुसला लेना
गैया भैंसी की बड़ी घार
दर्जन दर्जन कूकुर बिलार
तोता मैना से सजे द्वार
धीरे धीरे सब छूट गया
क्या बना बचा सब टूट गया
जीवन की आपा धापी में
वो छोड़ गए वो रुठ गया
एसी, बंगला मोटर गाड़ी
टीवी ऐशो आराम बढे
पर छूट गया परिवार बड़ा
सोचा था जिसका नाम बढ़े।।
कुछ मूल्य घटे कुछ दाम बढे।।.......
सुरेश साहनी ,कानपुर
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