ज़िन्दगी की हर कहानी को अधूरा कह गया।
और अपनी बात भी आधा अधूरा कह गया।।
कह गया जब वो जमूरे को मदारी सोचिए
वह बिना बोले मदारी को जमूरा कह गया।।
उसने तबले को पखावज जब कहा सब चुप रहे
और वह वीणा को धुन में तानपूरा कह गया।।
उसके जुमले आज जनता के लिए आदर्श हैं
क्या हुआ यदि आंवले को वह धतूरा कह गया।।
आँख का अन्धा भी है और गाँठ का पूरा भी है
मंच उसकी शान उसका ही ज़हूरा कह गया।।
प्रेम को ऊंचाईयां दी हैं विरह के गान ने
जो कबीरा से बचा वह बात सूरा कह गया।।
सुरेश साहनी
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