फ़िज़ा तूफान के असर में है।

जहाज़ी आज भी सफ़र में है।।

जो सड़क पर है मस्त है लेकिन

जो भी घर में है आज डर में है।।

कल कोई हादसा हुआ है क्या

एक दहशत सी हर नज़र में है।।

उनको जंगल में कोइ खौंफ नहीं

ख़ौफ़ उनको मग़र शहर में है।।

हमने जम्हूरियत को ढूंढ लिया

अब वो ज़िंदाने - राहबर में है।।

सुरेश साहनी, कानपुर

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