वफादारी निभाने जा रहे हो।

किसे अपना बनाने जा रहे हो।।


वहां आमद है अक्सर बिजलियों की

कहाँ दामन जलाने जा रहे हो।।


अदा है हुस्न है नखरे भी होंगे

कहो क्या क्या दिखाने जा रहे हो।।


इरादा क्या है इतनी तीरगी में

चिरागों को बुझाने जा रहे हो।।


अगर तुम गाँव मे सब बेच आये

शहर में क्या कमाने जा रहे हो।।


अभी दिल्ली विदेशी हो चुकी है

किसानों किस ठिकाने जा रहे हो।।


ये सारा मुल्क जब सोया पड़ा है

तो किसका घर बचाने जा रहे हो।।


बताओ अब कि तुम आज़ाद हो क्या

सुना उत्सव मनाने जा रहे हो।।


सुरेश साहनी, कानपुर

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