हमेशा छोड़ जाना चाहते हो।
बताओ क्या जताना चाहते हो।।
कभी औरों का दुख भी सुन के देखो
फ़क़त अपनी सुनाना चाहते हो।।
कभी तो मुस्कुरा कर के मिलो तुम
हमेशा मुँह फुलाना चाहते हो।।
तुम्हारी गलतियों से तुम गिरे हो
मुझे क्यों कर गिराना चाहते हो।।
तुम्हारी दृष्टि मैली हो चुकी है
मगर पक्का निशाना चाहते हो।।
सुधर जाओ तो प्यारे बेहतर है
भला क्यों लात खाना चाहते हो।।
हमारे रास्ते बिल्कुल अलग है
निकल लो क्यों पकाना चाहते हो।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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