कहाँ से आदमी लगने लगा हूँ।

मुझे भी मैं कोई लगने लगा हूँ।।


बताया मुझको मेरे आईने ने

उसे में अजनबी लगने लगा हूँ।।


सुना है कोई मुझपे मर मिटा है

उसे मैं ज़िन्दगी लगने लगा हूँ।।


ज़माना हो गया है दुश्मने-जां

मैं हक़ की पैरवी लगने लगा हूँ।।


अभी किस दौर में हम आ गए हैं

जहां मैं मुल्तवी लगने लगा हूँ।।


कोई तो मुझमे उसमें फ़र्क़ होगा

कहाँ से मैं वही लगने लगा हूँ।।


कहीं से साहनी को ढूंढ लाओ

उसे मैं शायरी लगने लगा हूँ।।


सुरेश साहनी कानपुर

9451545132

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