श्रद्धा अब काहे की श्रद्धा
तर्पण अब काहे का तर्पण।
जीते जी यदि नहीं रहा हो
मात पिता के लिए समर्पण।।
हमने कब यह सोचा हमसे
माता पिता चाहते क्या है
जबकि उनसे मिलता ही था
हम उनको दे पाते क्या हैं
कब पूछा था हमने उनसे
अन्यमनस्क रहने का कारण।।
श्रवण कुमार जैसा बनने की
अब कितने इच्छा रखते हैं
कितने मर्यादा पुरुषोत्तम
बनने का साहस रखते हैं
जीते जी श्रद्धायुत सेवा-
ही होता है सच्चा तर्पण।।
सबसे बड़ा धर्म है प्यारे
माता और पिता की सेवा
बड़े बुजुर्गों की ख़िदमत से
इज़्ज़त से मिलता है मेवा
हर किताब में यही मिलेगा
वह क़ुरान हो या रामायण।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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