डबडबायी आँख क्या क्या कह गयी

आंसुओं में सब कथायें बह गयी।

थरथराते होठ जबकि मौन थे

पर परिस्थितियां व्यथाये कह गयी।।


खींचते हैं आज रेखायें सभी

किन्तु उनमें शेष अंशी कौन है।

काट लेगा हाथ रावण के तुरत

आज ऐसा सूर्यवंशी  कौन है।।


परपुरुष की बात भी सोचे नही

इसके पीछे पुरुष के पुरुषार्थ हैं।

अर्धांगिनी के आप भी अर्धांग है

अन्यथा सब भावनायें व्यर्थ हैं।।


वो हमारे वास्ते जप तप करे

वो हमारे वास्ते ही व्रत करे।

ऐसे में सबका यही कर्तव्य है

भार्या को शक्तिनिज उद्धृत करे।।


अपने अन्तस् में उसे स्थान दें

उसके सुख दुःख का अहर्निश ध्यान दें।

वो हमारी प्रेरणा है प्राण है

हम उसे स्नेह दें सम्मान दें।।

सुरेश साहनी

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