किसी इंसा के मरने पर यहां मातम नहीं होते।
कबीले एक दूजे के शरीके-ग़म नहीं होते।।
नये हिन्दोस्तां की बात ही ऐसी निराली है
यहां सब हैं अना वाले ये मैं से हम नहीं होते।।
ये तीरे-नीमकश हैं दोस्त मज़हब की सियासत के
कि इनसे मिलने वाले ज़ख्म के मरहम नहीं होते।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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