आये थे घिर के शाम को बादल कहाँ गये।
लेकर के मेरी आँख से काजल कहाँ गये।।
मेरी गली ही आज लगी अजनबी मुझे
जाने मेरे मिजाज के पागल कहाँ गये।।
वो अहले हुस्न जाने-बहारों के काफिले
आख़िर वो होके आँख से ओझल कहाँ गये।।
अक्सर इसी दयार से गुजरा किया था में
यां थे कई हरे भरे जंगल कहाँ गये।।
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