जो हम न् मुँह में जुबान रखते।

तो ओहदा आलीशान रखते।।


न आन रखते न बान रखते।

ज़मीर बिकता   दुकान रखते।।


हमारे  शाने से तीर चलते

वे हाथ अपने कमान रखते।।


तुम्हारे हाथों भी तेग होती

जो उसके कदमों में म्यान रखते।।


नसीब होते तुम्हें भी मोती  

जो तुम न् ऊंची उड़ान रखते।।


शहीद होने से कुछ मिला क्या

जहान मिलता जो जान रखते।।


ज़रा जो  गिरते नज़र में अपनी

तमाम ऊँचे मकान रखते।।


सुरेश साहनी कानपुर

94515451

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