ख़्वाब अपने आसमानी ही रहे।

तुम मेरी ख़ातिर कहानी ही रहे।।

मैंने चाहा दिल की बस्ती में रहो

तुम अना में राजधानी ही रहे।।

उनके दावे थे हवाई और क्या

कुल जमा खर्चे जुबानी ही रहे।।

लुट रही थी मेरी दुनिया और तुम

चाहते थे शादमानी ही रहे।।Q

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है