जब हम आते हैं तरंग में।

रस बरसाते हैं तरंग में।।


सब कहते हैं जादू सा है

जो हम गाते हैं तरंग में।।


नहीं सुना तो क्यों यह माने

लोग बुलाते हैं तरंग में।।


कुछ कहते हैं भाव न् खाओ

हम तो खाते हैं तरंग में।।


और कहीं सचमुच दुर्लभ है

जो हम पाते हैं तरंग में।।


आओ इसमे तब जानोगे

क्यों सब आते हैं तरंग में।।


अज्ञानी पूछा करते हैं

क्या समझाते हैं तरंग में।।


ख़ुद अज्ञात रहा करते है 

वे जो लाते हैं तरंग में।।


हम सुरेश कब रह जाते हैं

जब रंग जाते हैं तरंग में।।


सुरेश साहनी कानपुर

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