तुम्हें देखना था अगर देखना था।

तुम्हारे सिवा फिर किधर देखना था।।

तुम्हारी गली से गुजरने का मक़सद

ख़ुदारा तुम्हे इक नज़र देखना था।।

मेरे चाँद को फ़िक्र थी चांदनी की

सितारों को शायद सहर देखना था।।

कभी छाँव में जिसकी हम तुम मिले थे

मुझे आज फिर वो शज़र देखना था।।

चलो राख उन हसरतों की कुरेदें

मुझे इश्क़ का वो शरर देखना था।।

कहो तो तुम्हारी निगाहों से देखें

मुझे मेरे ख़्वाबों का घर देखना था।।


सुरेश साहनी कानपुर

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