अन्धे युग मे अंधा होकर जीना सीख रहा हूँ।

हद से ज्यादा सीधा होकर जीना सीख रहा हूँ।।


पूरा होना मुश्किल होकर जीना भी मुश्किल है

आधे से भी आधा होकर जीना सीख रहा हूँ।।


इतनी ज़िम्मेदारी लेकर आया हूँ इस जग में

बचपन मे ही बूढ़ा होकर जीना सीख रहा हूँ।।


आदत डाल रहा हूँ मैं हर हालत में चल पाऊँ

मैं जूता चमरौधा होकर जीना सीख रहा हूँ।।


सीधे चलकर देख लिया दुनिया उल्टा चलती है

मैं ऐसे में औंधा होकर जीना सीख रहा हूँ।।


मस्ती में जब झूम रहे हैं शैतानों के प्यारे

मैं मालिक का बन्दा होकर जीना सीख रहा हूँ।।


सुरेश साहनी, अदीब कानपुर

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