अल्लाह नहीं था जब भगवान नहीं थे जब।।
क्या था तेरी दुनिया में इंसान नहीं थे जब।।
नफ़रत के तलातुम कभी ऐसे नहीं उठते थे
मज़हब की सियासत के तूफान नहीं थे जब।।
हद से भी कहीं ज़्यादा तब होगी हसीं दुनिया
अलक़ाब न थे इतने उनवान नहीं थे जब।।
तुझको तो पता होगा कैसी थी मेरी दुनिया
ये रीत धरम दीनो-ईमान नहीं थे जब।।
क्या तब भी तेरी दुनिया इतनी बड़ी दिखती थी
ये रेल नहीं थी जब वीमान नहीं थे जब।।
जो बात करो दिल से वो दिल को पहुंचती थी
मुश्किल थे कहाँ रस्ते आसान नहीं थे जब।।
क्या तब नहीं करते थे बातें वे ग़ज़ल जैसी
दुनिया में तेरी रुक्न-ओ-अरकान नहीं थे जब।।
क्या इश्क़ तेरी दुनिया मे तब भी रहा होगा
इस ख़ल्क़ में नफ़रत के सामान नहीं थे जब।।
ये शेखो बरहमन क्या तब भी थे भले इतने
मौला तेरी दुनिया में शैतान नहीं थे जब।।
सुरेश साहनी ,अदीब
कानपुर
Comments
Post a Comment