चुप जो रहती है उसकी खामोशी।
कुछ तो कहती है उसकी खामोशी।।
वो नही बोलती किसी शय से
बोल पड़ती है उसकी खामोशी।।
तंज़ उसके कभी नहीं अखरे
पर अखरती है उसकी खामोशी।।
उस तबस्सुम को गौर से देखो
खूब जँचती है उसकी खामोशी।।
कहकहे सब बिखर गए उसके
सिर्फ़ दिखती है उसकी खामोशी।।
जब कभी वो उदास होता है
खूब हँसती है उसकी खामोशी।।
साहनी फूट फूट रोता है
जब उभरती है उसकी खामोशी।।
सुरेश साहनी कानपुर
9451545132
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