पुष्प पथ में बिछाये हैं रख दो चरण।
आपसे स्नेह का है ये पुरश्चरण।।
प्रीति के पर्व का यह अनुष्ठान है
दृष्टि का अवनयन लाज सोपान है
सत्य सुन्दर की सहमति है शिव अवतरण।।
कुछ करो कि स्वयम्वर सही सिद्ध हो
सिद्धि हो और रघुवर सही सिद्ध हो
शक्ति बन मेरे भुज का करो प्रिय वरण।।
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