जब कभी ख़ुद से ऊब जायें हम।
तुम कहो कैसे कैफ़ लायें हम।।
और किस के क़रीब जायें हम।
किस को अपना यहां बनायें हम।।
बेवफ़ाई तो यार ने की है
फिर भला अश्क़ क्यों बहायें हम।।
दिन उसी वक़्त का तो हिस्सा है
वक़्त काटें कि दिन बितायें हम।।
बेहतर है कि मयकदे चल दें
होश में जब भी लड़खड़ायें हम।।
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