आज मैंने उसे पढ़ा खुलकर ।
आज ही वो मुझे मिला खुलकर।।
कोई मधुमास हो गया खुलकर।
और सावन बरस पड़ा खुलकर।।
इश्क़ में गाँठ था पुरानापन
हो गया फिर नया नया खुलकर।।
आज की रात क्या क़यामत थी
आज की रात मैं जिया खुलकर।।
अल सुबह गुनगुना उठा कोई
आज सूरज भी था खिला खुलकर।।
ख़ुश्क होठों का नीम पलकों से
कोई किस्सा बयां हुआ खुलकर।।
साहनी भी कमाल करता है
जो न कहना था कह दिया खुलकर।।
सुरेश साहनी कानपुर
9451545132
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