अपने पैरों पर खड़ा होना पड़ा।
बेवज़ह मुझको बड़ा होना पड़ा।।
बिक के अहले रोकड़ा होना पड़ा।
फिर वजीरे- केकड़ा होना पड़ा।।
तेरी दुनिया किस क़दर तक़सीम है
मुझको भी यकसू खड़ा होना पड़ा।।
देश है या फिर कबीलों का हुजूम
अंततः मुझको धड़ा होना पड़ा।।
बोझ अपनों का उठाने के लिए
मुझको खच्चर खड़खड़ा होना पड़ा।।
लोग अच्छा जानकर के खा न् लें
मुझको नेचर का सड़ा होना पड़ा।।
साफ करने थे ज़माने के गटर
बेबसी में बेवड़ा होना पड़ा।।
सुरेश साहनी कानपुर
9451545132
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