दर्द जाकर किसे सुनाते हम।
लोग हंसते तो मर न जाते हम ।।
उस मसीहा से क्या छुपाते हम।
या बताते तो क्या बताते हम।।
जब तुम्हीं ने यक़ीन तोड़ दिया
फिर भला किस को आज़माते हम।।
फिर ठिकाना कोई कहाँ मिलता
उस ख़ुदा को अगर भुलाते हम।।
आसमानों की ओर आना था
क्या ज़मीनों पे घर बनाते हम।।
जो मुअज्जिन की तू नहीं सुनता
फिर भला किस तरह बुलाते हम।।
साहनी पहले से ज़मीन पे है
और कितना उसे गिराते हम।।
साभार
Suresh Sahani SiR
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