वक्त बे वक्त निकल पड़ता है।

दर्द लफ़्ज़ों में मचल पड़ता है।।

दिल तो पत्थर है मगर आंखों से

कोई चश्मा सा उबल पड़ता है।।

तेरे आने से निकल पड़ती हैं जां

दिल न आने पे दहल पड़ता है।।

बेवज़ह कब्र पे दस्तक मत दो

नींद में अपनी ख़लल पड़ता है।।

इस तरह याद न आया करिये

अपनी पेशानी पे बल पड़ता है।।

सुरेश साहनी कानपुर

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