अपनी केवल इतनी भूख।

उनकी जाने कितनी भूख।।


सबके अपने अपने सपने

सबकी अपनी अपनी भूख।।


कुछ की एक कटोरी भर है

कुछ की थाली जितनी भूख।।


लदी हुई है  मजदूरों पर 

सेठ तुम्हारी वज़नी भूख।।


आखिर तुमको क्यों लगती है

इंसां की  बदचलनी  भूख।।


आदमखोर तेरी फ़ितरत में

कुटिल हवस की जननी भूख।।


सुरेश साहनी, कानपुर

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