हम जब भी उस राह चले हैं।

हम खुद से ही जुदा मिले हैं।।

किसकी किससे करें शिकायत

सारे अपने ही निकले हैं।।

अंधियारों से कौन जूझता

दीपक बनकर हमीं जले हैं।।

हमें बुझाने को आंधी ने

उलटे सीधे दांव चले हैं।।

लेकिन जितनी हवा चली है

हम उससे ज्यादा मचले हैं।।

हमें डराता है तो सुन हम-

तूफानों में बढ़े पले हैं।।


सुरेश साहनी

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