होश खोने दो लड़खड़ाने दो।
अपनी आंखों में डूब जाने दो।।
इन किनारों को दूर जाने दो।
दिल की किश्ती को डूब जाने दो।।
तुम कोई गीत बन के आ जाओ
मेरे होठों को गुनगुनाने दो।।
अपने पहलू में फिर सुलाओ मुझें
मेरे ख़्वाबों को जाग जाने दो।।
आओ घूंघट उठाओ महफ़िल में
ताब वालों को आजमाने दो।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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