चुप न बैठो आज प्रिय 

कुछ बोल दो कुछ बोल दो।

आज अवगुंठन हृदय के 

खोल दो कुछ बोल दो।।.......


क्या समय की वर्जनाओं ने कभी रोका तुम्हें

या कि दुनिया की प्रथाओं ने कभी रोका तुम्हें


हर प्रथा हर वर्जना को 

तोड़ कर प्रिय बोल दो।।

चुप न बैठो आज प्रिय 

कुछ बोल दो कुछ बोल दो।।......


प्रेम की बहती नदी में कल रवानी हो न हो

आज हम तुम साथ हैं कल ज़िंदगानी हो न हो


अपनी नीरस ज़िन्दगी में 

शादमानी घोल दो।।

चुप न बैठो आज प्रिय 

कुछ बोल दो कुछ बोल दो।।......


आज हाथों से निकलने का न कल अफ़सोस हो

आज का अमृतकलश कल सिर्फ़ सूखा कोष हो


आज ही हर शब्द को 

स्वर्णाक्षरों का मोल दो।।

चुप न बैठो आज प्रिय 

कुछ बोल दो कुछ बोल दो।।.......


सुरेश साहनी,कानपुर

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