आप बरहम हैं तो क्या हम मुस्कुराएं भी नहीं।
गीत गाना छोड़ दें हम गुनगुनाएं भी नहीं।।
पास रहने पर उन्हें गोया बड़ी तकलीफ है
और उस पर उज़्र यह हम दूर जाएं भी नहीं।।
उन की चाहत है कि उनके ज़ुल्म हम हँस कर सहें
और वो ऐंठे रहें हम कुनमुनाये भी नहीं।।
वो ये चाहें हैं कि सब आवाज अपनी घोट लें
जानवर बोलें न् पंछी चहचहायें भी नहीं।।
और हम अपनों के हक़ में सोचना भी छोड़ दें
यूँ कि अपनों के लिए मांगे दुआयें भी नहीं।।
सुरेश साहनी कानपुर
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