चलो विजय पथ पर चलते हैं

आशा के रथ पर चलते हैं।।


हम हारे या मन हारा है

क्या अपना जीवन हारा है

यह पड़ाव है उस मंज़िल तक

हम अपने कथ पर चलते हैं।।


कांटे कंकड़ पत्थर क्या है

फिर साहस से बढ़कर क्या है

चलों लिए विश्वास आज फिर

मन के सारथ पर चलते हैं।।


जीवन तो फिर भी जीना है

अमृत सा हर विष पीना है

यदि शिवत्व अपना अभीष्ट है

इसी मनोरथ पर चलते हैं।।


रम्भा जैसी सुर बालायें

कितना ही मन को भटकायें

एक लक्ष्य है विजय प्राप्ति कर

रतिपति मन्मथ पर चलते हैं।।


सुरेश साहनी, कानपुर

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