एहसासे-वस्ल से ही तबियत सँवर गयी।
गोया बहार ज़ीस्त को छूकर गुज़र गयी।।
एहसासे -गम से कोई तआरुफ़ कहाँ हुआ
वो हुस्ने दिलफ़रेब ये आयी उधर गयी।।
जो इश्क़ दायरे में रहे इश्क़ ही नहीं
मजनू कहाँ रुका कहाँ लैला ठहर गयी।।
एहसासे-वस्ल से ही तबियत सँवर गयी।
गोया बहार ज़ीस्त को छूकर गुज़र गयी।।
एहसासे -गम से कोई तआरुफ़ कहाँ हुआ
वो हुस्ने दिलफ़रेब ये आयी उधर गयी।।
जो इश्क़ दायरे में रहे इश्क़ ही नहीं
मजनू कहाँ रुका कहाँ लैला ठहर गयी।।
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