इस देश का एक बहुत बड़ा मजदूर वर्ग नौका चालन, मछली पालन,मछली का आखेट ,झींगा व्यवसाय,कमलगट्टा सिंघाड़ा उत्पादन ,सीप-मोती  आदि तथा पानी पहुंचाने के कार्य से जुड़ा हुआ है।इनका कार्य क्षेत्र हमेशा ही शहरी मुख्यालयों से दूर ताल-पोखर,नदी-नाले कछार अथवा समुद्र के तटीय अंचलों में  रहा है। अधिक दिनों  तक जलीय क्षेत्रों में काम करने अथवा आवास-प्रवास होने से हाइड्रो-जेनरेटेड डिसीज अथवा माइक्रोफंगल इंफेक्शन से यह लोग अधिक प्रभावित रहते हैं।इसके साथ ही सुदूर क्षेत्रों में रहने के कारण इनकी पीढियां अशिक्षित अथवा कम शिक्षित रह जाती हैं।

   देश को लगभग आठ प्रतिशत राजस्व देने वाले इन साढ़े छह करोड़ जल श्रमिकों का कोई माई बाप नहीं हैं।इसका एक बड़ा कारण है आज तक इनके कार्यो  को श्रम मंत्रालय ने अथवा केंद्र सरकार ने मान्यता नहीं दी है। 

जबकि इस समुदाय को फिशरमैन और #वाटरवर्कर्स के रूप में सरकार द्वारा मान्यता देकर इनके इएसआई कार्ड,परिचय पत्र दे देना चाहिए था।इस बार की केंद्र सरकार इनके कार्यों के लिए #एक्वाकल्चर एंड फिशरीज़ मंत्रालय और रेगुलट्रीज़ बनाने का वादा करके मुकर गई।इनके क्षेत्रीय और ढांचागत विकास के लिए दोआबा और कछार विकास परिषदों का गठन आज भी लम्बित है।यह भी #फिशरमैन समुदाय का दुर्भाग्य है।

#समन्वयवाद

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