आप ईश्वर को नकार सकते हैं।किंतु समय और प्रकृति को क्यों नकारते हैं।समय और प्रकृति दोनों का अस्तित्व है। दोनों की प्रतीति है। एक को हम आंखों से देख पाते हैं और एक को नहीं किंतु दोनों के गर्भ में अनन्त रहस्य हैं।इन दोनों का समन्वय सृष्टि है।सृष्टि जिसे हम नकार नहीं सकते।आप सब कुछ नकार दीजिये।क्या होगा ,आप पृथक हो जाएंगे,अलग थलग पड़ जाएंगे।आप में अहंकार आ जायेगा।आप अपनी बात सब पर थोपेंगे।बहुत से लोग आपकी बात सुन सकते हैं।किंतु उससे भी अधिक आपकी बातों से निस्पृह रहते हैं।उनकी उदासीनता से आपका मन बढ़ता है।आपमें श्रेष्ठता बोध आता है।यह #सोSहम वाली अनुभूति नहीं है।यह स्वयं को ईश्वर बताने का छद्म प्रयास है।जब आप स्वयं को सर्वोच्च मानने लगते हैं ,तब सृष्टि आपके अस्तित्व को नकार देती है।इसलिए विग्रह बोध से बचें।आप और समस्त चराचर प्रेम और अस्तित्व के समान अधिकारी हैं।यह सत्य है, शिव है ,और सुंदर भी है। #समन्वयवाद
भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील
अमवा के बारी में बोले रे कोयिलिया ,आ बनवा में नाचेला मोर| पापी पपिहरा रे पियवा पुकारे,पियवा गईले कवने ओर निरमोहिया रे, छलकल गगरिया मोर निरमोहिया रे, छलकल गगरिया मोर||........... छलकल .... सुगवा के ठोरवा के सुगनी निहारे,सुगवा सुगिनिया के ठोर, बिरही चकोरवा चंदनिया निहारे, चनवा गईले कवने ओर निरमोहिया रे, . छलकल .... नाचेला जे मोरवा ता मोरनी निहारे जोड़ीके सनेहिया के डोर, गरजे बदरवा ता लरजेला मनवा भीजी जाला अंखिया के कोर निरमोहिया रे, . छलकल .... घरवा में खोजलीं,दलनवा में खोजलीं ,खोजलीं सिवनवा के ओर , खेत-खरिहनवा रे कुल्ही खोज भयिलीं, पियवा गईले कवने ओर निरमोहिया रे, छलकल ....
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