जैसे जैसे ज़िन्दगी जाती रही।
मौत की परवाह भी जाती रही।।
उम्र ने जैसे कहीं ठहरा दिया
और फिर आवारगी जाती रही।।
ख़ुश्कियाँ सहरा को पाकर कम हुई
और लब से तिश्नगी जाती रही।।
अहले दिल आये अना के नूर में
इश्क़ वाली रोशनी जाती रही।।
अब भी है इब्लीस ग़ालिब चारसू
कैसे माने तीरगी जाती रही।।
फिर किरायेदार ढूढेंगे नया
याद दिल से आपकी जाती रही।।
साहनी अब आदमी हैं काम के
वक़्त रहते आशिक़ी जाती रही।।
सुरेश साहनी कानपुर
9451545132
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