खुद को खोया ,खुद को पाया।
तब मैंने क्या ख़ाक कमाया।।
हुए अरबपति श्री संत जी
समझाते हैं सब है माया।।
जन्मजात मैं रहा बावरा
या ज्ञानी हो कर बौराया ।।
कैसे बात समझ में आती
कहाँ किसी ने कुछ समझाया।।
अनपढ़ था तो लिख लेता था
और पढ़ा तो लिखा लिखाया।।
प्राण नहीं तो तैर रहा है
प्राण रहे तो तैर न पाया।।
जाना था जब हाथ झार कर
नाहक़ इतना समय गंवाया।।
Suresh sahani, kanpur
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