दूज तीज छठ अब भी है।
गंगा का तट अब भी है।।
अरबों रुपये फूंक दिए
कूड़ा करकट अब भी है।।
नैतिकता के मानी क्या
नेता लम्पट अब भी है ।।
किसको फुर्सत सुनने की
जो था बतकट अब भी है।।
बच्चों की पहली ख्वाहिश
टॉफी कम्पट अब भी है।।
मानसरोवर जाने में
उतनी झंझट अब भी है।।
चित तो तब भी अपनी थी
अपनी ही पट अब भी है।।
इस शमशानी संसद से
बेहतर मरघट अब भी है।।
तुम सुरेश को क्या जानो
सच्चा मुँहफट अब भी है।।
Suresh sahani
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