फिर अदब का वही उसूल चले।

दौरे-हाज़िर में जिस को भूल चले।। 


जैसे उस दौर में ग़ज़ल के लिए  

मीर के  दाग़ के  स्कूल चले।।


बेहतर हैं चलें उसी जानिब

जिस तरफ़ थे मेरे रसूल चले।।


जिस जगह प्रेम की बजे मुरली

मन उसी भानुजा के कूल चले।।


क्या ज़रूररत वहां रुका जाये

बात कोई जहाँ  फिजूल चले।।


क्या ज़रूरी मुबाहिसे में पड़ें

बात जब कोई ऊलजलूल चले।।


साहनी अब है इश्क़ की जद में

अब तो पत्थर पड़े कि फूल चले।।


सुरेश साहनी कानपुर

9451545132

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